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वधिक का गीत / ध्रुव शुक्ल
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14:43, 17 अप्रैल 2009
न्याय के द्वन्द्व से परे घूमती पृथ्वी
तहस-नहस कर देती है पूरी बस्ती को
आँधियों
आंधियों
के द्वन्द्व से परे चलती हवा
उखाड़ फेंकती है सबकी साँसें
विचारों के द्वन्द्व से परे नीला आकाश
अनिल जनविजय
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