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11:19, 6 जुलाई 2006 लेखक: [[जयशंकर प्रसाद]]
[[Category: जयशंकर प्रसाद]]
आह ! वेदना मिली विदाई<br>
मैंने भ्रमवश जीवन संचित,<br>
मधुकरियों की भीख लुटाई<br><br>
छलछल थे संध्या के श्रमकण<br>
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण<br>
मेरी यात्रा पर लेती थी<br>
नीरवता अनंत अँगड़ाई<br><br>
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में<br>
गहन-विपिन की तरु छाया में<br>
पथिक उनींदी श्रुति में किसने<br>
यह विहाग की तान उठाई<br><br>
लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी<br>
रही बचाए फिरती कब की<br>
मेरी आशा आह ! बावली<br>
तूने खो दी सकल कमाई<br><br>
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर<br>
प्रलय चल रहा अपने पथ पर<br>
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर<br>
उससे हारी-होड़ लगाई<br><br>
लौटा लो यह अपनी थाती<br>
मेरी करुणा हा-हा खाती<br>
विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे<br>
इसने मन की लाज गँवाई<br><br>