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|संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
जो पेड़, मेरे पिता ने कभी लगाया था
 
पिता के बाद पिता— सा ही उसका साया था
 
 
ये दर्पणों के अलावा न कोई देख सका
 
स्वयं सँवरते हुए रूप कब लजाया था
 
 
गगन है मन में मेरे, ये गगन को क्या मालूम
 
ये प्रश्न, झील की आँखों में झिलमिलाया था
 
 
तुम्हारा गीत, तुम्हारा नहीं रहा अब तो
 
तुम्हारा गीत, करोड़ों स्वरों ने गाया था
 
 
मुझे वो लगने लगा अंगरक्षकों की तरह
 
जो हर समय मेरी परछाईं में समाया था
 
 
इसीलिए मैं गुलाबों की कद्र करता हूँ
 
गुलाब, काँटों में घिर कर भी मुस्कुराया था
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