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Kavita Kosh से
पर चढ़ता है। नदी पर बांध देने वाला घुटने भर
पानी में डूबता है, अपने आप टूटता पहाड़ तोड़ने वाला।
और जो नया-नया रास्ता निकालता है,टकराताजटकराता जारहा है दिशाओं से- हदोंसेहदों से, रास्ता अपना बंद कर
लेता है, घुटता है मन के अंधेरे में सूरज जबकि
ठीक उसके सर पर चमकता है। आदमी जहाँ आदमी