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आग के फूल / सुभाष मुखोपाध्याय

No change in size, 16:54, 26 अप्रैल 2009
जिनकी संगीनों में चमक रही है बिजली
वे हट जाएँ सामने से
हमारे चैड़े चौड़े कंधों से टकराकर
दीवारें गिर रही हैं --
हट जाओ।
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