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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
क्या हुआ जो गाँव में घर घर अँधेरा है
सज गई संसद भवन में दीपमाला तो
कुर्सियों की जीवनी में व्यस्त दरबारी
शब्द से चाहे न टूटे बंद ताला तो
आज मेरे स्कूल की छत गिर गई आख़िर
खुल रहीं उनकी विदेशी पाठशाला तो
भील - युवती ने कहा कल ग्राम मुखिया से
मार खाओगे अगर अब हाथ डाला तो
झोंपड़ी पर लिख रहे वे गीत रोमानी
दर्द आंसू पीर सिसकी घाव छाला तो
अब ज़रूरी अक्षरों में आग भरना है
नोंक हो तीखी कलम की तीर भाला तो</Poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
क्या हुआ जो गाँव में घर घर अँधेरा है
सज गई संसद भवन में दीपमाला तो
कुर्सियों की जीवनी में व्यस्त दरबारी
शब्द से चाहे न टूटे बंद ताला तो
आज मेरे स्कूल की छत गिर गई आख़िर
खुल रहीं उनकी विदेशी पाठशाला तो
भील - युवती ने कहा कल ग्राम मुखिया से
मार खाओगे अगर अब हाथ डाला तो
झोंपड़ी पर लिख रहे वे गीत रोमानी
दर्द आंसू पीर सिसकी घाव छाला तो
अब ज़रूरी अक्षरों में आग भरना है
नोंक हो तीखी कलम की तीर भाला तो</Poem>