भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
कुछ न होगा तैश से या सिर्फ़ तेवर से,
या सिर्फ़ तेवर सेचल रही है, प्यास की बातें समन्दर से ।
चल रही है, प्यास की
बातें समन्दर से ।
रोशनी के काफ़िले भी भ्रम सिरजते हैं,
स्वर आगर ख़ामोश हो तो और बजते हैं,
रोशनी के काफ़िले भी अब निकलना ही पड़ेगा, गाँव से- घर से
भ्रम सिरजते हैं,
स्वर आगर ख़ामोश हो तो
और बजते हैं,
एक सी शुभचिंतकों की शक्ल लगती है,
रात सोती है हमारी नींद जगती है,
जानिए तो सत्य भीतर और बाहर से ।
अब निकलना ही पड़ेगा,
गाँव से- घर से
जोहती है बाट आँखें घाव बहता है,
हर कथानक आदमी की बात कहता है,
 एक सी शुभचिंतकों की  शक्ल लगती है,  रात सोती है  हमारी नींद जगती है,     जानिए तो सत्य  भीतर और बाहर से ।     जोहती है बाट आँखें  घाव बहता है,  हर कथानक आदमी की  बात कहता है,  किसलिए सिर भाटिए  दिन- रात पत्थर से ।