भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
कुछ न होगा तैश से या सिर्फ़ तेवर से,
रोशनी के काफ़िले भी भ्रम सिरजते हैं,
स्वर आगर ख़ामोश हो तो और बजते हैं,
एक सी शुभचिंतकों की शक्ल लगती है,
रात सोती है हमारी नींद जगती है,
जानिए तो सत्य भीतर और बाहर से ।
जोहती है बाट आँखें घाव बहता है,
हर कथानक आदमी की बात कहता है,
Anonymous user