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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तेवरी / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>नाग की बाँबी खुली है आइए साहब
भर कटोरा दूध का भी लाइए साहब

रोटियों की फ़िक्र क्या है ? कुर्सियों से लो
गोलियाँ बँटने लगी हैं खाइए साहब

टोपियों के हर महल के द्वार छोटे हैं
और झुककर और झुककर जाइए साहब

मानते हैं उम्र सारी हो गई रोते
गीत उनके ही करम के गाइए साहब

बिछ नहीं सकते अगर तुम पायदानों में
फिर क़यामत आज बनकर छाइए साहब </poem>