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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>राजपथों पर कोलाहल है, संविधान की वर्षगाँठ है
गली-गली में घोर गरल है, संविधान की वर्षगाँठ है

पैने हैं नाखून उन्हीं के, मुट्ठी में क़ानून उन्हीं के
उन्हें विखंडन बहुत सरल है, संविधान की वर्षगाँठ है

शासन अनुशासन बेमानी, मंदिर-मस्ज़िद की मनमानी
रक्तपात की नीति सफल है, संविधान की वर्षगाँठ है

घर में आग लगाय जमालो, खड़ी-खड़ी मुस्काय जमालो
शांतिचक्र ध्वज आज विकल है, संविधान की वर्षगाँठ है

कब तक जनता सहे अकेली, मरती खपती रहे अकेली
जनपथ से उमड़ा दलबल है, संविधान की वर्षगाँठ है

कुर्सी का उपदंश बढ़ चुका, वोट-नोट का वंश बढ़ चुका
शल्य-चिकित्सा केवल हल है, संविधान की वर्षगाँठ है </Poem>