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|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
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कहाँ से बढ़कर पहुँचे हैं कहाँ तक इल्म-ओ-फ़न साक़ी <br>
मगर आसूदा इनसाँ का न तन साक़ी न मन साक़ी<br><br>
मुझे डर है कि इस नापाकतर दौर-ए-सियासत में<br>
बिगड़ जाएँ न खुद मेरा मज़ाक़े मज़ाक़-ए-शेर --फ़न साक़ी
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