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Kavita Kosh से
दर बरस निकाल लिए
और बाल बच्चे पाल लिए
किसी नेता की दाढी दाढ़ी से
कविता की गाड़ी खींचते रहे
किसी के मरे हुए पानी से
शब्दों की फुलवारी सींचते रहे
किसी के चरित्र पर चोट करते रहे
धोती हो फाड़ कर को फाड़कर लंगोट करते रहे
कब तक फाड़ते!
घिसे हुए नेता की आरती
कब तह तक उतारते?
अब राजनीति में क्या रक्खा है
क्योंकि हर विरोधी
कि आने वाली पीढियाँ
पता लगाते-लगाते खत्म हो जएंगी
कि मूल गीत कौन -सा है।"
वह बोला-"फ़िल्मी गीतों की पैरोडी कैसी रहेगी?"
हमने कहा-"समाचार!
कहाँ हड़ताल हुई, कहाँ दंगा
कौन सहीद शहीद हुआ
कौन नंगा
यही पता लगाते-लगाते
हमने कहा-"अगर किसी डाकू ने
मार दिया चाकू
तो बच्चे अनाथ हो जाएंगे।भूख से परेशान होकरडाकुओं के साथ हो जाएंगे।"
वह बोला-"चोर।"
क्योंकि चोर इस ज़माने में
सम्मानित शब्द है
गाली नहीं हैहै।"
वह बोला-"आसाम"
हम कवि हैं
अपनी छवि नहीं बिगाड़ेंगे
कूड़े को कलम क़लम से नहीं बुहारेंगे।
वह बोला-"भ्रष्टाचार!"
हमने कहा-"एक ऐसा झाड़
हमने कहा-"वे भी आजकल
बहुत चालाक हो गए हैं।"
एक लावारिस चुट्कुले चुटकुले को हमने
पाल पोस कर बड़ा किया
मगर ऐन वक्त पर ऐंठ गया
दूसरे की गोद में बैठ गया।
हमने पूछा तो बोला
और चुटकुला बिना ताली के
ठीक उसी तरह है