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{{KKRachna
|रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय
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नीरवता के सांध्य शिविर में
आकुलता के गहन रूप में उर में बस जाया करते हो ।
बोलो प्रियतम क्यों रह रह कर याद मुझे आया करते हो ?

आज सृष्टि का प्रेय नहीं हिय में बसता है
मिले हाथ से हाथ यही जग का रिश्ता है
अब कौन कहाँ किसके दिल में बैठा करता है ,
पर तुम मानस के गहन निविड़ में
मधु सौरभ के सघन रूप में आकर बह जाया करते हो -
बोलो प्रियतम क्यों रह रह कर याद मुझे आया करते हो ?

तार प्रीति के आज कहाँ जुड़ते हैं स्नेही
प्रेम-ज्योति के दीप कहाँ जलते हैं स्नेही
स्नेह समर्पित लोग कहाँ मिलते हैं स्नेही,
पर तुम जीवन की श्वांस रूप में
औ' श्वांसों के लघु कम्पन में आ कुछ कह जाया करते हो -
बोलो प्रियतम क्यों रह रह कर याद मुझे आया करते हो ?
</poem>
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