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|रचनाकार= रामधारी सिंह "दिनकर"}}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 3|आगे=रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 5|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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'पूछो मेरी जाति , शक्ति हो तो, मेरे भुजबल से'
मेरे रोम-रोम में अंकित है मेरा इतिहास।
अपनी महाजाति की दूँगा मैं तुमको पहचान।'
कृपाचार्य ने कहा ' वृथा तुम क्रुद्ध हुए जाते हो,
अर्जित करना तुम्हें चाहिये पहले कोई राज।'
उस नर का जो दीप रहा हो सचमुच, सूर्य समान।
'जाति-जाति' का शोर मचाते केवल कायर क्रूर।
मलिन, मगर, इसके आगे हैं सारे राजकुमार।