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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" }}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 4|आगे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 6|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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'सिर था जो सारे समाज का, वही अनादर पाता है।
जिसमें हो धीरता, वीरता और तपस्या का बल भी।