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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" }}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 2|आगे=रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 4|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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गिरा गहन सुन चकित और मन-ही-मन-कुछ भरमाया,
विप्रदेव! मॅंगाइयै छोड़ संकोच वस्तु मनचाही,
मरूं अयश कि मृत्यु, करूँ यदि एक बार भी 'नाहीं'.'  [[रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 2|<< चतुर्थ सर्ग / भाग 2]] | [[रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 4| चतुर्थ सर्ग / भाग 4 >>]]