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[[Category:कवितायें]]
[[Category:नागार्जुन]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ <poem>
फलाँ-फलाँ इलाके में पड़ा है अकाल
 
खुसुर-पुसुर करते हैं, ख़ुश हैं बनिया-बकाल
 
छ्लकती ही रहेगी हमदर्दी साँझ-सकाल
 
--अनाज रहेगा खत्तियों में बन्द !
 
हड्डियों के ढेर पर है सफ़ेद ऊन की शाल...
 
अब के भी बैलों की ही गलेगी दाल !
 
पाटिल-रेड्डी-घोष बजाएँगे गाल...
 
--थामेंगे डालरी कमंद !
 
बत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मराल
 
पूछिए चलकर वोटरों से मिजाज का हाल
 
मिला टिकट ? आपको मुबारक हो नया साल
 
--अब तो बाँटिए मित्रों में कलाकंद !
'''(1967 में रचित)</Poem>
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