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12:47, 9 मई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय
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<poem>
दर्द सहता रहा उसे,
सहता है अब तलक ।
दर्द ने अपनी हस्ती भर उसे चाहा
उसकी शिराओं, मांसपेशियों से होते- होते
उसके मस्तिष्क, उसके हृदय तक
अपनी पैठ बना ली,
तब उसने इस दर्द को
अपना नाम ही दे दिया ।
दर्द उसका नाम लेकर
अनगिन स्थानों पर गया
उसकी खातिरदारी में कहीं कमी नहीं हुई ।
सबने पूछा दर्द से कि
रिश्ता क्या है तुम्हारा उससे
कि तुमने अपना नाम ही बदल लिया उससे ।
मुस्कराकर दर्द ने सुनाई अपनी कथा -
कथा, जो उसकी अस्मिता से जुडी थी,
जिसने जिंदा रखा था दर्द को
अभी भी दुनिया के लिए ।
सबको मालूम है वह कहानी
कहीं न कहीं , कभीं न कभीं
लोगों की कहावतों, गुमनाम गीतों,
डायरियों और आंसुओं में
लगातार कही जाती है वह ।
वस्तुतः दर्द का बदला हुआ नाम
कुछ और नहीं - प्यार है ।
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