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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग']][[Category:ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग']]|संग्रह= }}[[Category:कविताएँग़ज़ल]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ <poem>
उजाला जब भी आया इस गली में
लगा ठहरा है सूरज बेबसी में
कभी तो होश में भी याद करते
पुकारा तुमने बस बेखुदी में
अगर वो रूठकर जाता तो जाता
गया वो झूमता गाता खुशी में
हजारों शाप लेकर, सोचता हूँ
दुआ भी है कहीं क्या जिन्दगी में
कहाँ मालूम था शीतल हवा को
वो डूबेगी पसीने की नदी में
खुदा का खौफ गर बाकी रहा तो
मज़ा आया कहाँ फिर मैकशी में
बफा, ईमान, सच्चाई, मोहब्बत
नहीं, तो फिर बचा क्या जिन्दगी में।
</poem>