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{{KKRachna
|रचनाकार=इब्बार रब्बी
|संग्रह=लोगबाग / इब्बार रब्बी
}}
<poem>मैं मरूँ दिल्ली की बस में<br>पायदान पर लटक कर नहीं<br>पहिये से कुचलकर नहीं<br>पीछे घसीटता हुआ नहीं<br>दुर्घटना में नहीं<br>मैं मरूँ बस में खड़ा-खड़ा<br>भीड़ में चिपक कर<br>चार पाँव ऊपर हों<br>दस हाथ नीचे<br>दिल्ली की चलती हुई बस में मरूँ मैं<br>अगर कभी मारून तो<br>बस के योवन और सोन्दर्य के बीच<br>कुचलकर मरूँ मैं<br>अगर मैं मरूँ कभी तो वहीं<br>जहाँ जिया गुमनाम लाश की तरह<br>गिरुं मैं भीड़ में<br>
साधारण कर देना मुझे है जीवन!
रचनाकाल : 20.09.1983
</Poem>