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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=तेजेन्द्र शर्मा]]}}[[Category:कविताएँग़ज़ल]][[Category:तेजेन्द्र शर्मा]]<poem>जो तुम न मानो मुझे अपना, हक तुम्हारा हैयहां जो आ गया इक बार, बस हमारा है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~कहां कहां के परिन्दे, बसे हैं आ के यहाँसभी का दर्द मेरा दर्द, बस ख़ुदारा है
जो तुम नदी की धार बहे आगे, मुड क़े मानो मुझे अपना, हक तुम्हारा है<br>देखेयहां जो आ गया इक बार, बस हमारा न समझो इसको भंवर अब यही किनारा है<br><br>
कहां कहां के परिन्दे, बसे हैं आ के यहाँ<br>जो छोड़ आये बहुत प्यार है तुम्हें उससेसभी का दर्द मेरा दर्दबहे बयार जो, समझो न तुम, बस ख़ुदारा शरारा है<br><br>
नदी की धार बहे आगे, मुड क़े न देखे<br>न समझो इसको भंवर अब यही किनारा है<br><br> जो छोड़ आये बहुत प्यार है तुम्हें उससे<br>बहे बयार जो, समझो न तुम, शरारा है<br><br> यह घर तुम्हारा है इसको न कहो बेगाना<br>मुझे तुम्हारा, तुम्हें अब मेरा सहारा है<br><br/poem>
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