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Kavita Kosh से
वह उनकी समझ में नहीं आया
मेरा उसी डाल पर बैठकर उसी को लगातार काटना
अन्दर और बाहर के कृत्रिम गूंगेपन को एक साथ
काटकर अलग कर देना--वह उनकी समझ में नहीं आया
उस बंझा डाल के साथ ही मेरा वह टूटकर
धरती की अमर युवा ख़ुश्बू में गिरना
::और नष्ट हो जाना
::निश्चय ही वह उनकी समझ में नहीं आया
::इतिहास का वह नंगा पटाक्षेप।
::मौन के विराट अश्वत्थ थे जो::मुझे ले गए-- वाक् और अर्थ::के समुच्चय-बोध तक-- वे::मेरे गुरूजन नहीं थे।::अपने ही जर्जर, अय्याश वाग्जाल से पराजित::स्तंभित। मदान्ध।::नंगे। विरूप। विक्षिप्त। भयाक्रान्त।:::वे दिशाहारा थे।
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