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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=तेजेन्द्र शर्मा]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:तेजेन्द्र शर्मा]]<poem>डरा डरा सा मैं रातों को जाग जाता हूँनींद आती है मगर सो नहीं मैं पाता हूँ
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~सवाल ये नहीं ये शहर क्यों डराता हैसवाल ये है कि मैं क्यों भटक सा जाता हूँ
डरा डरा सा मैं रातों को जाग जाता हूँ<br>ये शहर मेरा है समझो ना इसे बेगानानींद आती है मगर सो नहीं मैं क्यों यहां का शहरी ना बन पाता हूँ<br><br>
सवाल ये नहीं ये शहर क्यों डराता है<br>जो लोग गाँव की मिट्टी को यहां लाए हैंसवाल ये है कि मैं क्यों भटक सा जाता बदन में उनके अपनेपन की महक पाता हूँ<br><br>
ये शहर मेरा है समझो ना इसे बेगाना<br>मगर मैं क्यों यहां का शहरी ना बन पाता हूँ<br><br> जो लोग गाँव की मिट्टी को यहां लाए हैं<br>बदन में उनके अपनेपन की महक पाता हूँ<br><br> जनम जहाँ हुआ क्या देश वही होता है<br>करम की बात को मैं क्यों समझ ना पाता हूँ<br><br/poem>
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