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[[Category:गज़ल]]
कुछ मुहतसिबों की ख़िलवत में कुछ वा-इज़ वाइज़ के घर जाती है<br>हम बादा-कशों के हिस्से को अब जाम में कम -कम आती है<br><br>
यूँ अर्ज़-ओ-तलब से कब ऐ दिल पत्थर-दिल पानी होते हैं<br>
बेदाद-गरों की बस्ती है याँ दाद कहाँ फ़रियाद् कहाँ<br>
सर फोडती फिरती है नादाँ फ़रियाद जो दर -दर जाती है<br><br>
हाँ जी के ज़याँ की हम को भी तश्वीश है लेकिन क्या कीजियेकीजे<br>
हर राह जो उधर को जाती है मक़्तल से गुज़र कर जाती है<br><br>
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