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Kavita Kosh से
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|रचनाकार=[[गा़लिब]]
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल <ref>बच्चों का खेल</ref>है दुनिया मेरे आगे <br>होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे <br><br>
इक खेल है औरंग-ए-सुलेमाँ मेरे नज़दीक <brref>सुलेमान का राजसिंहासन</ref>मेरे नज़दीक इक बात है एजाज़ऐजाज़-ए-मसीहा मेरे आगे <brref>ईसा का चमत्कार जिनकी फूँक से मुर्दे जीवित हो उठते थे<br/ref>मेरे आगे
जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मंज़ूर <br>जुज़ <ref>के सिवा </ref> वहम नहीं हस्ती-ए-अशिया मेरे आगे <brref>हस्ती जैसी चीज़<br/ref>मेरे आगे
होता है निहाँ <ref>प्रकट</ref>गर्द में सेहरा सहरा मेरे होते <br>घिसता है जबीं <ref>माथा</ref> ख़ाक पे दरिया मेरे आगे <br><br>
मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे <br>तू देख के क्या रन्ग है तेरा मेरे आगे <br><br>
सच कहते हो ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा <ref>गर्वित और आत्म-अलंकृत</ref> हूँ , न क्योँ हूँ <br>बैठा है बुत-ए-आईना सीमा मेरे आगे <brref>दर्पण के जैसे चमकने वाला माशूक<br/ref>मेरे आगे
फिर देखिये अन्दाज़-ए-गुलअफ़्शानी-ए-गुफ़्तार <brref>बात का अंदाज़ यूँ कि जैसे फूल झड़ते हों</ref>रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मेरे आगे <brref>मधुपात्र और मदिरा<br/ref>मेरे आगे
इमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र <br>काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे <brref>गिरजाघर<br/ref>मेरे आगे
आशिक़ हूँ पे माशूक़फ़रेबी है मेर माशूक़ फ़रेबी<ref>माशूक को रिझाने का काम <br/ref>है मेर काम मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे <br><br>
ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जाते <br>आई शब-ए-हिजराँ <ref>विरह-रात्रि </ref> की तमन्ना मेरे आगे <br><br>
है मौजज़न <ref>लहरेँ मारता हुआ</ref>इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ <ref>रक्त का समुद्र</ref> काश! यही हो <br>आता है अभी देखिये क्या-क्या मेरे आगे <br><br>
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है <br>रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे हमपेशा-ओ-हममशरब-ओ-हमराज़<brref>सहव्यवसायी, सहपंथी</ref> है मेरा 'गा़लिब' को बुरा क्योँ कहो अच्छा मेरे आगे <br/poem>