भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
}}
[[रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 4|<< पिछला द्वितीय सर्ग / भाग 4]] | [[रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 6| द्वितीय सर्ग / भाग 6 >>]]
पाप-भार से दबी-धँसी जा रही धरा पल-पल निश्चय।
सहकर भी अपमान मनुजता की चिन्ता करनेवाले,
राजाओं से अधिक पूज्य जब तक न इन्हें वह मानेगा,
भूप समझता नहीं और कुछ, छोड़ खड्ग की भाषा को।
हर न सका जिसको कोई भी, भू का वह तुम त्रास हरो।
जिसमें हो धीरता, वीरता और तपस्या का बल भी।
[[रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 4|<< द्वितीय सर्ग / भाग 4]] | [[रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 6|अगला द्वितीय सर्ग / भाग 6 >>]]
Anonymous user