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|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह 'दिनकर'
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विप्रजाति के सिवा किसी को मत तलवार उठाने दो।
 
 
दहक उठा वन उधर, इधर फूटी निर्झर की धारा है।
 
 
तुम अवश्य ढोओगे उसको मुझमें है जो तेज, अनल।
 
 
तप कर सकते और पिता-माता किसके इतना भारी?
 
 
और शिष्य ने कभी किसी गुरु को इस तरह छला होगा?
 
 
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