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घर / पंकज सुबीर

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|रचनाकार=पंकज सुबीर
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मेरा घर बुढ़ाने लगा है
खांसती हैं दीवारे आजकल
रात भर
हालंकि डरती हैं
कि कहीं मेरी नींद न टूट जाए
इसलिये शायद
लिहाफ में मुंह दबा कर खांसती हैं
फिर भी मैं सुन लेता हूं
और जान लेता हूं
कि मेरा घर
बूढ़ा होता जा रहा है
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