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Kavita Kosh से
कहते हैं हम तुम को मुँह दिखलायें क्या<br><br>
रात -दिन गर्दिश में हैं सात आस्माँ <br>
हो रहेगा कुछ न कुछ घबरायें क्या <br><br>
लाग हो तो उस को हम समझें लगाव <br>
जब न हो कुछ भी तो धोका धोखा खायें क्या <br><br>
हो लिये क्यों नामाबर के साथ-साथ <br>