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|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’'पंकिल'
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इन्द्रिय घट में भक्ति रसायन भर भर चखता रह मधुकर
तन्मय चिन्तन सच्चा रस में देता तुम्हें बोर निर्झर
बाहर भीतर के नारायण को कर एकाकार स्वरित
टेर रहा सारूप्यसुन्दरी मुरली तेरा मुरलीधर।।115।।
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