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|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ 'पंकिल'
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दुख का मुकुट पहन कर तेरे सम्मुख सुख आता मधुकर
सुख का स्वागत करता तो दुख का भी स्वागत कर निर्झर
किन्तु अभीप्सा ही न मचलती रहे उसे फलवती बना
टेर रहा है फलितवल्लरी मुरली तेरा मुरलीधर।।125।।
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