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|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’'पंकिल'
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उसका ही विस्तार विषद ढो रहा अनन्त गगन मधुकर
मन्दाकिनी सलिल में प्रवहित उसकी ही शुचिता निर्झर