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{{KKRachna
|रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय
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<poem>

काश ! मेरा मन
सरकंडे की कलम- सा होता
जिसे छील-छाल कर,
बना कर
भावना की स्याही में डुबाकर
मैं लिखता
कुछ चिकने अक्षर -
मोतियों-से,
प्रेम के ।
</poem>
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