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{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
}}
<poem>
क़त्आ
=====
दौरे-मय ख़त्म हुआ, ख़त्म हुई सुह्बते-शब<ref>रात्रि-मिलन</ref>
हो चुकी सुब्ह मगर रात अभी बाकी़ है
ऐसा लगता है कि बिछड़ी है अबी मिलके नज़र
ऐसा लगता है मुलाक़ात अभी बाक़ी है
{{KKMeaning}}
</poem>
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क़त्आ
=====
दौरे-मय ख़त्म हुआ, ख़त्म हुई सुह्बते-शब<ref>रात्रि-मिलन</ref>
हो चुकी सुब्ह मगर रात अभी बाकी़ है
ऐसा लगता है कि बिछड़ी है अबी मिलके नज़र
ऐसा लगता है मुलाक़ात अभी बाक़ी है
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