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|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
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कार्ल मार्क्स
''‘नीस्त पैग़म्बर व लेकिन दर बग़ल दारद किताब’''<ref>वह पैग़म्बर नहीं लेकिन साहिब-ए-किताब है</ref>
वह जलवः जिसकी तमन्ना भी चश्मे-आदम को
वह जलवः चश्मे-तमन्ना में बेनक़ाब है आज
 
 
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