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{{KKRachna
|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी
|संग्रह= समर्पण / माखनलाल चतुर्वेदी
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<poem>
तू न तान की मरोर
 
देख, एक साथ चल,
 तू न ज्ञान-गर्व-मत्त--शोर देख, देख साथ चल।
सूझ की हिलोर की
 
हिलोरबाज़ियाँ न खोज,
 तू न ध्येय की धरा--
गुंजा, न तू जगा मनोज।
 
तू न कर घमंड, अग्नि,
 
जल, पवन, अनंग संग
 
भूमि आसमान का चढ़े
 न अर्थहीन अर्थ-हीन रंग।
बात वह नहीं मनुष्य
 
देवता बना फिरे,
 था कि राग-रंगियों--
घिरा, बना-ठना फिरे।
 बात वह नहीं कि--
बात का निचोड़ वेद हो,
 
बात वह नहीं कि-
 
बात में हज़ार भेद हो।
 
स्वर्ग की तलाश में
 
न भूमि-लोक भूल देख,
 खींच रक्त-बिंदुओं--भरी , हज़ार स्वर्गस्वर्ण-रेख।
बुद्धि यन्त्र है, चला;
 
न बुद्धि का गुलाम हो।
सूझ अश्व है, चढ़े--
चलो, कभी न शाम हो।
सूझ अश्व है, चढ़े चलो, न कभी शाम हो।  शीश की लहर उठे--फसल कि , एक शीश ले।दे।
पीढ़ियाँ बरस उठें
 
हज़ार शीश शीश ले।
 
भारतीय नीलिमा
जगे कि टूट-टूट बंद
स्वप्न सत्य हों, बहार--
गा उठे अमंद छन्द।
जगे कि टूट बंद स्वप्न सत्य होंरचनाकाल: सत्यनारायण कुटीर, बहारप्रयाग--१९४८गा उठे अमंद छन्द।</poem>
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