भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
आज भी आया था वह
 
आता है ऐसे ही अक्सर
 
खिसियासा, अकेले चिपकाए मुस्कान चेहरे पर
 
पार्टी के कुछ लोग
 
करते हैं विरोध उसका
 
कि मानते नहीं हैं सदस्य बनने योग्य भी उसे,
 
तो भी टूटा नहीं होसला
 
अभी तक
 
कि ठीक हो जाता है मैनेज करने से सबकुछ
 
पुरानी पहचान वाले लोग
 
जो जान भी गये हैं खेल उसका
 
बिगाड़ लेंगे क्या!
 
कि दालान भर नहीं किसी की दुनिया
 
बहुत बड़ी है
84
edits