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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''बसेरा''' माँ! ‘साड्डा चिड़ि...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''बसेरा'''
माँ!
‘साड्डा चिड़ियाँ दा चम्बा...’
किसी दिन चबा गए
श्वान, मार्जार और हिंस्र भूखे पशु
[एक-एक कर
पाँखें पसारी थीं न जिस दिन
उससे भी पहले
तिनके जोड़ने सिखाए थे तुमने]
फिर
एक नीड़.......
लंबी उडा़न.....
इधर उजड़ गया घोंसला,
जो किसी नींव गडे़ घर की
छत पर बनाया था,
तिनके जोड़ने का अभ्यासी मन
नदी किनारे, डालें पसारे
किसी वृक्ष पर
जोड़ने लगा तिनके
जुड़ने लगा नीड़,
आकाश में....
हवा में....
लहरों में....
एक दिन
शून्य में लय हो गया
उड़ गया
उजड़ गया
डूब गया,
तिनका-तिनका था
छितरा गया,
बस!!
उड़ जाना है अब।
चिड़िया! चल उड़....
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''बसेरा'''
माँ!
‘साड्डा चिड़ियाँ दा चम्बा...’
किसी दिन चबा गए
श्वान, मार्जार और हिंस्र भूखे पशु
[एक-एक कर
पाँखें पसारी थीं न जिस दिन
उससे भी पहले
तिनके जोड़ने सिखाए थे तुमने]
फिर
एक नीड़.......
लंबी उडा़न.....
इधर उजड़ गया घोंसला,
जो किसी नींव गडे़ घर की
छत पर बनाया था,
तिनके जोड़ने का अभ्यासी मन
नदी किनारे, डालें पसारे
किसी वृक्ष पर
जोड़ने लगा तिनके
जुड़ने लगा नीड़,
आकाश में....
हवा में....
लहरों में....
एक दिन
शून्य में लय हो गया
उड़ गया
उजड़ गया
डूब गया,
तिनका-तिनका था
छितरा गया,
बस!!
उड़ जाना है अब।
चिड़िया! चल उड़....
</poem>