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'''मैं कुछ नहीं भूली'''
 
 
सब याद है मुझे
हमारे आँगन का ‘नलका’
नहीं भूले हम।
आज लगता है-
:::::मैंने उसका दिल गल-घिसाया था।
पूस माघ की ठंडी रातें
‘मौसी’ के गले हाथ
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