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मैं कुछ नहीं भूली / कविता वाचक्नवी
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20:12, 5 जून 2009
}}
<poem>
'''मैं कुछ नहीं भूली'''
सब याद है मुझे
हमारे आँगन का ‘नलका’
नहीं भूले हम।
आज लगता है-
:::::
मैंने उसका दिल गल-घिसाया था।
पूस माघ की ठंडी रातें
‘मौसी’ के गले हाथ
अनिल जनविजय
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