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रहे असफल
उन्हें क्या ज्ञात है -
:::स्फोट में ही :::प्राण अपने :::जागते हैं।
दहकते चोले बसंती
और भी फुंकारती हैं।
:::अब कपालों का करेंगे :::खूब मोचन :::वेदियाँ हुँकारती हैं।
</poem>
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