भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्र दास
}}
<poem>
अपरिचित चेहरे पर परिचित मुस्कान !
 
जी करता है
 
सजा लूँ अपने गुलदान में
 
इन अज़नबी फूलों को ....
 
कसे बदन की लचक
 
दूर उड़ती पखेरू-पंखों-सी शरारती आँखें
 
देवस्थान के लिपे प्रांगन-सी शीतल भंगिमा
 
न कोई भय
 
और न संकोच
 
निरंतर स्नेह की पीत शोभा
 
किंतु गतिमान
 
मैंने देखा
 
सहज ही टपकते मधु
 
फूलों से
 
स्वायत्त अभिलाषा के आस-पास मैंने
 
फूलों से चिनगारियाँ निकलते देखा
 
बदल लिया विचार
 
गुलदान में सजाने का
 
एक कविता ही बहुत है
 
जटिल आकाँक्षाओं के रूबरू
 
एक बाज़ार है
 
सर्पिल कुटिल रास्ते है
 
स्वप्निल मेघ छाए है
 
दरअसल,
 
गलती हुई है मुझसे ही
 
वह अजनबी फूल नहीं
 
ब्रैंडेड सामान है कोई.
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,118
edits