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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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कुदिन लगा, सरोजिनी सजा न सर,

सुदिन भगा, न कंज पर ठहर भ्रमर,

अनय जगा, न रस विमुग्‍ध अधर,

---सदैव स्‍नेह

के लिए

विफल हृदय!


कटक चला, निकुंज में हवा न चला,

नगर हिला, न फूल-फूल पर मचल,

ग़दर हुया, सुरभि समीर से न रल,

---सदैव मस्‍त

चाल से

चला प्रणय!


समर छिड़ा, न आज बोल, कोकिला,

क़हत पड़ा, न कंठ खोल कोकिला,

प्रलय खड़ा, न कर ठठोल कोकिला,

---सदैव प्रीति-

गीत के

लिए समय!
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