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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
कुदिन लगा, सरोजिनी सजा न सर,
सुदिन भगा, न कंज पर ठहर भ्रमर,
अनय जगा, न रस विमुग्ध अधर,
---सदैव स्नेह
के लिए
विफल हृदय!
कटक चला, निकुंज में हवा न चला,
नगर हिला, न फूल-फूल पर मचल,
ग़दर हुया, सुरभि समीर से न रल,
---सदैव मस्त
चाल से
चला प्रणय!
समर छिड़ा, न आज बोल, कोकिला,
क़हत पड़ा, न कंठ खोल कोकिला,
प्रलय खड़ा, न कर ठठोल कोकिला,
---सदैव प्रीति-
गीत के
लिए समय!
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
कुदिन लगा, सरोजिनी सजा न सर,
सुदिन भगा, न कंज पर ठहर भ्रमर,
अनय जगा, न रस विमुग्ध अधर,
---सदैव स्नेह
के लिए
विफल हृदय!
कटक चला, निकुंज में हवा न चला,
नगर हिला, न फूल-फूल पर मचल,
ग़दर हुया, सुरभि समीर से न रल,
---सदैव मस्त
चाल से
चला प्रणय!
समर छिड़ा, न आज बोल, कोकिला,
क़हत पड़ा, न कंठ खोल कोकिला,
प्रलय खड़ा, न कर ठठोल कोकिला,
---सदैव प्रीति-
गीत के
लिए समय!