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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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समीर स्‍नेह-रागिनी सुना गया,

तड़ाग में उफान-सा उठा गया,

तरंग में तरंग लीन हो गई;

झुकी निशा,

झँपी दिशा,

झुके नयन!


बयार सो गई अडोल डाल पर,

शिथिल हुआ सुनिल ताल पर,

प्रकृति सुरम्‍य स्‍वप्‍न बीच खो गई;

गई कसक,

गिरी पल‍क,

मुँदे नयन!


विहंग प्रात गीत गा उठा अभय,

उड़ा अलक चला ललक पवन मलय,

सुहाग नेत्र चुमने चला प्रणय;

खुला गगन,

खिले सुमन,

खुले नयन!
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