सिर धरि मुनिबर बचन सबु निज निज काजहिं लाग।।6।।<br><br>
जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा। सो तेहिं काजु प्रथम जनु कीन्हा।।<br>
बिप्र साधु सुर पूजत राजा। करत राम हित मंगल काजा।।१।। <br>
सुनत राम अभिषेक सुहावा। बाज गहागह अवध बधावा।।<br>
राम सीय तन सगुन जनाए। फरकहिं मंगल अंग सुहाए।।सुहाए।।२।।<br>
पुलकि सप्रेम परसपर कहहीं। भरत आगमनु सूचक अहहीं।।<br>
भए बहुत दिन अति अवसेरी। सगुन प्रतीति भेंट प्रिय केरी।।केरी।।३।।<br>
भरत सरिस प्रिय को जग माहीं। इहइ सगुन फलु दूसर नाहीं।।<br>
रामहि बंधु सोच दिन राती। अंडन्हि कमठ ह्रदउ जेहि भाँती।।भाँती।।४।।<br>
दो0-एहि अवसर मंगलु परम सुनि रहँसेउ रनिवासु।<br>
सोभत लखि बिधु बढ़त जनु बारिधि बीचि बिलासु।।7।।<br><br>
प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए। भूषन बसन भूरि तिन्ह पाए।।<br>
प्रेम पुलकि तन मन अनुरागीं। मंगल कलस सजन सब लागीं।।१।। <br>
चौकें चारु सुमित्राँ पुरी। मनिमय बिबिध भाँति अति रुरी।।<br>
आनँद मगन राम महतारी। दिए दान बहु बिप्र हँकारी।।हँकारी।।२।।<br>
पूजीं ग्रामदेबि सुर नागा। कहेउ बहोरि देन बलिभागा।।<br>
जेहि बिधि होइ राम कल्यानू। देहु दया करि सो बरदानू।।बरदानू।।३।।<br>गावहिं मंगल कोकिलबयनीं। बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं।।मृगसावकनयनीं।।४।।<br>
दो0-राम राज अभिषेकु सुनि हियँ हरषे नर नारि।<br>
लगे सुमंगल सजन सब बिधि अनुकूल बिचारि।।8।।<br><br>
तब नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए। रामधाम सिख देन पठाए।।<br>
गुर आगमनु सुनत रघुनाथा। द्वार आइ पद नायउ माथा।।१।। <br>
सादर अरघ देइ घर आने। सोरह भाँति पूजि सनमाने।।<br>
गहे चरन सिय सहित बहोरी। बोले रामु कमल कर जोरी।।<br२।।br>
सेवक सदन स्वामि आगमनू। मंगल मूल अमंगल दमनू।।<br>
तदपि उचित जनु बोलि सप्रीती। पठइअ काज नाथ असि नीती।।नीती।।३।।<br>
प्रभुता तजि प्रभु कीन्ह सनेहू। भयउ पुनीत आजु यहु गेहू।।<br>
आयसु होइ सो करौं गोसाई। सेवक लहइ स्वामि सेवकाई।।सेवकाई।।४।।<br>
दो0-सुनि सनेह साने बचन मुनि रघुबरहि प्रसंस।<br>
राम कस न तुम्ह कहहु अस हंस बंस अवतंस।।9।।<br><br>
बरनि राम गुन सीलु सुभाऊ। बोले प्रेम पुलकि मुनिराऊ।।<br>
भूप सजेउ अभिषेक समाजू। चाहत देन तुम्हहि जुबराजू।।१।। <br>
राम करहु सब संजम आजू। जौं बिधि कुसल निबाहै काजू।।<br>
गुरु सिख देइ राय पहिं गयउ। राम हृदयँ अस बिसमउ भयऊ।।भयऊ।।२।।<br>
जनमे एक संग सब भाई। भोजन सयन केलि लरिकाई।।<br>
करनबेध उपबीत बिआहा। संग संग सब भए उछाहा।।उछाहा।।३।।<br>
बिमल बंस यहु अनुचित एकू। बंधु बिहाइ बड़ेहि अभिषेकू।।<br>
प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई। हरउ भगत मन कै कुटिलाई।।कुटिलाई।।४।।<br>
दो0-तेहि अवसर आए लखन मगन प्रेम आनंद।<br>
सनमाने प्रिय बचन कहि रघुकुल कैरव चंद।।10।।<br><br>
बाजहिं बाजने बिबिध बिधाना। पुर प्रमोदु नहिं जाइ बखाना।।<br>
भरत आगमनु सकल मनावहिं। आवहुँ बेगि नयन फलु पावहिं।।१।। <br>
हाट बाट घर गलीं अथाई। कहहिं परसपर लोग लोगाई।।<br>
कालि लगन भलि केतिक बारा। पूजिहि बिधि अभिलाषु हमारा।।हमारा।।२।।<br>
कनक सिंघासन सीय समेता। बैठहिं रामु होइ चित चेता।।<br>
सकल कहहिं कब होइहि काली। बिघन मनावहिं देव कुचाली।।कुचाली।।३।।<br>तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा। चोरहि चंदिनि राति न भावा।।<br /b>सारद बोलि बिनय सुर करहीं। बारहिं बार पाय लै परहीं।।परहीं।।४।।<br />दो0-बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु।<br /b>
रामु जाहिं बन राजु तजि होइ सकल सुरकाजु।।11।।<br><br>
सुनि सुर बिनय ठाढ़ि पछिताती। भइउँ सरोज बिपिन हिमराती।।<br>