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सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।।4।।<br><br>
मुदित महिपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए।। <br>
कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए। १ ।। १।।<br>जौं पाँचहि मत लागै नीका। करहु हरषि हियँ रामहि टीका।।२ ।।टीका।।२।।< br>
मंत्री मुदित सुनत प्रिय बानी।अभिमत बिरवँ परेउ जनु पानी।।<br>
विनती सचिव करहि कर जोरी।जिअहु जगतपति बरिस करोरी।।३।।<br>
जग मंगल भल काजु बिचारा। बेगिअ नाथ न लाइअ बारा।।<br>
नृपहि मोदु सुनि सचिव सुभाषा। बढ़त सुभाषा।बढ़त बौंड़ जनु लही सुसाखा।।४।।<br>
दो0-कहेउ भूप मुनिराज कर जोइ जोइ आयसु होइ।<br>
राम राज अभिषेक हित बेगि करहु सोइ सोइ।।5।।<br><br>
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