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इक लफ़्ज़े-मोहब्बत का, अदना सा फ़साना है, जड़ बूड़ति नाव सोहाती मिली बिरहा कतलान की काती मिली।<br>सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फैले तो ज़माना है।कहि तोष सबै सुख पाती मिली सजनी पियपानि की पाती मिली।<br>
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कविता कोश में [[जिगर मुरादाबादीतोष]]
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