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{{KKRachna |रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
कौन कहता है केवल शराब में है नशा?<br>
हम सबको यहां कोई न कोई है नशा ?<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
कर्म में है नशा, धर्म में है नशा,<br>
मर्म में है नशा, शर्म में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो अधर्म में भी है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥ <br><br>
नेता को है नशा, प्रणेता को है नशा,<br>
सृजेता को है नशा, विजेता को है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब श्रोता को है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
चित्रकार को है नशा, शिल्पकार को है नशा,<br>
कलाकार को है नशा, गीतकार को है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो कलमकार को है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
राम में है नशा, नाम में है नशा,<br>
ज़ाम में है नशा, काम में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो दाम में भी है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
गीत में है नशा, संगीत में है नशा,<br>
मीत में है नशा, प्रीत में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो दीवानगी में है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
शोहरत में है नशा, दौलत में है नशा,<br>
शोहबत में है नशा, मोहब्बत में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो हुकूमत में है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
ज़िन्दगी में है नशा, बन्दगी में है नशा,<br>
सादगी में है नशा, पसन्दगी में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो रंगीनगी में है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥ <br><br>
सृष्ठि में है नशा, व्यष्ठि में है नशा,<br>
समष्ठि में है नशा, प्रवृत्ति में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो दृष्ठि में है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥ <br><br>
गीता में है नशा, पूजा में है नशा,<br>
कविता में है नशा, मनीषा में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो वक्ता को है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥ <br><br>
इनको भी है नशा, उनको भी है नशा,<br>
तुमको भी है नशा, मुझको भी है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो हम सबको है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥ <br><br>
कौन कहता है केवल शराब में है नशा?<br>
हम सबको यहां कोई न कोई है नशा ?<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
कर्म में है नशा, धर्म में है नशा,<br>
मर्म में है नशा, शर्म में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो अधर्म में भी है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥ <br><br>
नेता को है नशा, प्रणेता को है नशा,<br>
सृजेता को है नशा, विजेता को है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब श्रोता को है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
चित्रकार को है नशा, शिल्पकार को है नशा,<br>
कलाकार को है नशा, गीतकार को है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो कलमकार को है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
राम में है नशा, नाम में है नशा,<br>
ज़ाम में है नशा, काम में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो दाम में भी है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
गीत में है नशा, संगीत में है नशा,<br>
मीत में है नशा, प्रीत में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो दीवानगी में है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
शोहरत में है नशा, दौलत में है नशा,<br>
शोहबत में है नशा, मोहब्बत में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो हुकूमत में है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥<br><br>
ज़िन्दगी में है नशा, बन्दगी में है नशा,<br>
सादगी में है नशा, पसन्दगी में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो रंगीनगी में है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥ <br><br>
सृष्ठि में है नशा, व्यष्ठि में है नशा,<br>
समष्ठि में है नशा, प्रवृत्ति में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो दृष्ठि में है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥ <br><br>
गीता में है नशा, पूजा में है नशा,<br>
कविता में है नशा, मनीषा में है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो वक्ता को है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥ <br><br>
इनको भी है नशा, उनको भी है नशा,<br>
तुमको भी है नशा, मुझको भी है नशा,<br>
सच पूछिए ज़नाब तो हम सबको है नशा।<br>
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥ <br><br>