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अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।<br><br>
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवलापीनेवाला,<br>
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,<br>
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -<br>
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।<br><br>
मेंहदी मेहंदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,<br>
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,<br>
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,<br>
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