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{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''साधना'''
एक मछली सुनहरी
ताल के तल पर ठहरी
ताकती रही रात भर
:::::दूर चमकते तारे को।
ब्राह्ममुहूर्त में
गिरी एक ओस बूँद
गिरा तारे का आँसू
मछली के मुँह में
:::::पुखराज बन गया।
</poem>
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|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''साधना'''
एक मछली सुनहरी
ताल के तल पर ठहरी
ताकती रही रात भर
:::::दूर चमकते तारे को।
ब्राह्ममुहूर्त में
गिरी एक ओस बूँद
गिरा तारे का आँसू
मछली के मुँह में
:::::पुखराज बन गया।
</poem>