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हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,<br>
मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।।६०।<br><br>
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|पीछे=मधुशाला / भाग २ / हरिवंशराय बच्चन
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