{{KKRachnakaarParichay|रचनाकार=गिरिधर शर्मा 'नवरत्न'}}पं. गिरिधर शर्मा 'नवरत्न' हिन्दी साहित्य में द्विवेदी युग के ऐसे स्वनामधन्य व्यक्तित्व थे जो न केवल एक साहित्यकार थे, अपितु एक सफल अनुवादक और हिन्दी के उत्थान में स्वयं को होम कर देने वाले सच्चे राष्ट्रभक्त थे। उनका जन्म झालरापाटन नगरी (जिला झालावाड, रजस्थान) में हुआ था। पं. नवरत्न ने अपने जीवन में मुट्ठी भर लोगों के लिये नहीं लिखा, अपितु हजारों हजार लोगों के लिए साहित्य रचा। इसमें हजारों देशवासियों के सपने समाहित थे। इसलिये उनका सृजन हिन्दी भारती के लिए मर मिटने वाले भावों को जाग्रत करता है। उन्होंने गुलाम भारत की दुर्दशा देख यह समझा था कि देश को परतन्त्रता से उबारने में हिन्दी और देशभक्ति के भाव होना आवश्यक है।
उन्होंने अपने लेखन में समाज और राष्ट्र की कई चेतनाओं को मन से छुआ जिनमें आत्मोत्सर्ग, स्वतन्त्रता, देशभक्ति के भाव मुखरित हैं। उन्हें अपने देश से अत्यधिक प्रेम था। इसी देश की माटी को उन्होंने अपनी आँखों का सुरमा बनाया था और इन्दौर में १९१८ ई. में आयोज्य हिन्दी साहित्य सम्मेलन में कर्मवीर गाँधी की अध्यक्षता में अपने द्वारा रचित ऐसा सुन्दर राष्ट्रगान प्रस्तुत किया था जिसमें भारत के सांस्कृतिक वैभव का स्वर्णिम चित्र था। इससे पहले भी उन्होंने १९१५ ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में ऐसी सुन्दर और मौलिक भारत माता की वन्दना प्रस्तुत की थी जिसे हिन्दी साहित्य का प्रथम राष्ट्रगीत माना गया था। परन्तु ये वे तथ्य हैं जिन्हें आज भी हिन्दी भारती को समर्पित साहित्यकार याद रखते हैं परन्तु १९२० ई. में उन्होंने जिस भावभरे भारत के राष्ट्रीयगान की रचना की थी उसके बारे में आज तक कोई इसलिये नहीं जान पाया कि वह रचना केवल हस्तलिखित ही रह गई और प्रकाशन से दूर हो गई।